चरैवेति चरैवेति यही तो मन्त्र है अपना
नहीं रुकना नहीं थकना सतत चलना सतत चलना ॥
हम सब मिले इस भूमि पर
हर ग्राम से, हर धाम से ॥
तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहती हूँ मातृ भू तुझ को अभी कुछ और भी दूँ ॥
कदम कदम बढ़ाये जा साधना की राह पर
त्याग ही मशाल में जिंदगी की थाह पर ॥