गीत ही ध्रुव पंक्ति

चरैवेति चरैवेति यही तो मन्त्र है अपना
नहीं रुकना नहीं थकना सतत चलना सतत चलना ॥

हम सब मिले इस भूमि पर
हर ग्राम से, हर धाम से ॥

तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहती हूँ मातृ भू तुझ को अभी कुछ और भी दूँ ॥

कदम कदम बढ़ाये जा साधना की राह पर
त्याग ही मशाल में जिंदगी की थाह पर ॥

एकता स्वतंत्रता समानता रहे
देश में चरित्र की महानता रहे ॥

मुश्किलें आएगी आने दो सागर में तुला उठने दो
हमें रुकना नहीं हमें झुकना नहीं ॥

हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा , मानव का विश्वाश जगेगा
भेद - भावना तमस हटेगा , समरसता - अमृत बरसेगा ॥