आत्मा का आधार ही वास्तविक आधार है, क्यों की आत्मा सम है , सब में एक ही जैसे समान रूप में अभिव्यक्त है , सबका एक ही चैतन्य है, इस पूर्णता के आधार परही प्रेमपूर्ण व्यवहार व्यक्ति को परमात्मा का जंग मानकर नितात प्रेम, विश्व को परमेश्वर का व्यक्त रूप मानकर विशुद्ध प्रेम यही वह अवस्था है । श्री गुरूजी
कहा आम का वृक्ष कहा यह कोयल ? इन दोनों का क्या संबंध है, यह संबंध कैसे हो गया ? पहाड़ पर होने वाला आँवला तथा समुद्र का नमक इनका आपस का क्या संबंध है ? औ गुहेश्वर आप इस गुफा के देवता है, मेरा आपका क्या संबंध है ?
श्रुष्टि में दूर अथवा विरोधी दिखनेवाली बातें भी जब आपस में मिलकर सामंजस्य चुनती है तो उसमें से अनेक अच्छी- सुन्दर बातो की सृष्टि होती है. अंत: सभी के साथ सामंजस्य बिठा लेना तथा सभी से स्नेह करना ही मनुष्य की प्रकृति होनी चाहिए। श्री मान अल्ल्भप्रभु
समता या समरसता ? - समरसता यह भारतीय विचारधारा का शब्द है । अपनी पहचान प्रस्थापित करने के लिये अपनी विचारधारा का ही शब्द आवश्यक है । अन्य विचरधाराओके शब्द प्रयोग से वैचारिक उधारी होगी । दतोपंतजी ठेंगाज़ी
शाखा यह समरसता का ही साधन है । बेड़ो की तटबंदी को तोडना होगा । समाज के विभिन्न आर्थिक सामाजिक समूहों में विधमान दूरियों को काम करना होगा । वह काम सामाजिक मानस में परिवर्तन लाने का काम है । न्यूनगंज या अगंज दोनों को टालना आवश्यक है । बंधुभाव से सब समाज को जोड़ना होगा । यह काम तीन स्त्रो पर होना चाहिए । बौद्धिक स्तर व्यवहार का स्तर उपक्रमों का स्तर ।
ताईजी सेविकाओको देस धार और राष्ट्र के प्रति हमेशा जागृत करते थे । हम सब जिस घर में रहते है वो घर छोटा है और दे वो बड़ा है । जिस तरह हम अपना घर संभालते है उसकी चिंता करते है उसी तरह हमें बड़े घर यानि, राष्ट्र की चिंता करनी है राष्ट्र को संभालना, उसका गौरव बढ़ना वो हमारा कर्त्वय है ।